Friday, February 21, 2014

जूठे प्रचार का अंत कब ?

           मैंने और आपने इस जगह को नफरत प्रगट करने के लिए नहीं, बल्कि सच्चाई और प्यार बताने के लिए चुना है। जब मैं इस ब्लॉग में कुछ लिखती हूँ तब मेरे दिल में किसी के प्रति कोई द्वेष का भाव नहीं होता बल्कि सच्चाई की रौशनी होती है। दुःख की बात यह है कि भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने जहाँ भी वक्तव्य दिया है वहाँ कुछ न कुछ जूठ जरूर फेका है ! उन सभी जूठी बातों का भांडाफोड़ मैं करना चाहूंगी यहाँ। हाल ही में मोदी ने हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर में इसी माह, फरवरी में 16-17 की अपने यात्रा में  कहा कि बिना परिवार वाला आदमी ही देश को भ्रष्टाचार-मुक्त शासन दे सकता है। उन्होंने कहा कि मेरे लिए न कोई आगे, न पीछे, किसके लिए भ्रष्टाचार करूँगा ? मेरे तो मन और तन दोनों देश को समर्पित हैं।  मेरा कोई परिवार नहीं है। ये सब बातें लोगों को लुभाने के लिए बहुत अच्छी तरह बनायी जातीं हैं, हकीकत कुछ और ही होती है।  और मैं आपको बताउंगी कि हकीकत क्या है। आइये चलते हैं अपने आप को बहुत ही अच्छे और सीधे सादे मानने वाले भाजपा के पीएम पद उम्मीदवार मोदी के जीवन में देखते हैं। 
       
    मोदी के परिवार को समजने कि लिए हमे धुल और मिटटी से भरे गाँव राजोसन जाना पड़ेगा।  उनका नाम है जशोदा बहन चिमनलाल मोदी। वे गुजरात के रजोसना गाँव कीं रहनेवालीं हैं। पूरे गाँव में सब उनको ‘नरेंद्र मोदी कीं पत्नी’ के रूप में जानते हैं। जानकारों का कहना है कि जिल्ला मेहसाणा के वडनगर में 18 साल की उम्र में उनकी शादी हुई थी।  लेकिन शादी के कुछ दिनों के बाद उनको अपने पिता चिमनलाल के घर वापिस भेज दिया गया था। शादी के वक्त वे सातवीं कक्षा में पढ़ती थीं और उनको पढाई पूरी करने के लिए पिता के घर भेज दिया गया था।  पति को खुश करने के लिए उन्होंने धोलका में पढाई कि और पुरानी एस एस सी 1972 में पूरी की।  बाद में प्राथमिक टीचर का कोर्स करने के बाद अहमदाबाद में तिन माह तक उन्होंने काम किया। इसके बाद बनासकांठा में डेकवाली गाँव में, फिर रूपल गाँव में जिला पंचायत स्कुल में 12 साल तक काम किया। उसके बाद वे रजोसना गाँव आ बसीं और आज भी वहीँ रहतीं हैं।
         
       रजोसना के एक ग्रामवासी ने बताया कि नरेंद्र मोदी को उनको अपने पास बुला लेना चाहिए, क्यू कि वे उनकीं पत्नी हैं। लेकिन वे पत्रकारों को बतातीं हैं कि अपने पति के खिलाफ वे कुछ नहीं बोलेंगी, क्यूँ के वे बहुत शक्तिशाली हैं और उन्होंने यह भी कहा कि उनको परिणामों की भी फिकर है।

           जशोदा बेन पति के त्याग के बाद आज तक पति को तरसती रहीं हैं और आज भी चाहतीं हैं कि वे एक दिन उनको अपने साथ रहने के लिए बुलाएंगे! मगर गांधीनगर तरफ ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता! यही उनका दुर्भाग्य है!और, दुर्भाग्य को दूर करने का भी उन्होंने रास्ता ढूंढा, कई ज्योतिषियों का मार्गदर्शन लिया, मगर सब यही कहकर रुक गए कि, एक दिन अपने पति के साथ उनको रहना जरूर मिलेगा। फिर भी, सत्य यह है कि नरेंद्र मोदी के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक परिवार है। गुजरात को भी वे अपना परिवार ही कहते हैं। अगर गुजरात को अपना परिवार मानकर वे महंगाई कम करें तो जनता को ख़ुशी होगी। अगर वे गुजरात को अपना परिवार मानते हैं तो उनको चाहिए कि गुजरात में साधारण मानवी को जो मुसीबतें उठानी पद रहीं हैं वे मिटा दें।  लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा। बल्कि गुजरात एस टी बसों में किराए बढे, अहमदाबाद में सिटी बसों में किराए बढे, लोगों को गरीबी का सामना करना पड़ रहा है।
      
       मोदी जी कह रहे हैं कि गुजरात में स्वराज आ गया है, लेकिन जूठ।  गुजरात में आज भी स्थिति बरकरार है। सार्वजनिक प्रशासन में भ्रष्टाचार है और हररोज नए घोटाले खुल रहे हैं। गांधीनगर में मोदी जी के ही शहर में कोई चम्पावट नाम का आदमी, जो कि भाजपा का कार्यकर था, वह डेढ़ करोड़ की नकद राशि के साथ पकड़ा गया और जोर से पुलिस को बता रहा था कि वह सब पैसे भाजपा को चुनाव जितने के लिए देने वाला था! गुजरात में रेवेन्यू तलाटी की नौकरियों के लिए इस चम्पावट ने रिश्वत लेने में पीछे मुड़ के नहीं देखा। और पुलिस का छापा पड़ा उसकी संस्था पर। कुछ दिनों पहले मोदी साहेब ने केराल में पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए अपने आप को दलित बता दिया था।  उन्होंने कहा था, “मैं आपके परिवार का ही हूँ।  आप मेरे परिजन हैं।” ! सवाल यह है की अपने आप को बिना-परिवार का बताकर जनता के पास जानेवाले मोदी के शब्दों में कितना विश्वास किया जाना चाहिए ?

       ‘परिवार नहीं है, परिवार नहीं है’ कह गुजरात में भ्रष्टाचार का बड़ा रास्ता खोल देनेवाले मोदी साहेब को कौन समजाये कि, साहब, अगर परिवार ही नहीं है तो फिर ये सब कहाँ जाता है जो लोगों से इकठ्ठा किया जाता है ?
तो, यह सब है नरेंद्र मोदी के राज्य की सच्चाई।

इतना सन्नाटा क्यों है, भाई ?

हिंदी चलचित्र 'शोले' में लेखकों सलीम-जावेद ने एक दृश्य रखा है - जब इमाम साब के बेटे कि लाश गाँव में आती है और वहाँ गाँववालों के बीच जो बातचीत होती है तब इमाम साब कहते हैं : इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई ? थोड़ी देर में उनको पता चल जाता है सन्नाटे का कारण। 
       
       गुजरात में आज एक डरावना सन्नाटा छाया हुआ है।  हर व्यक्ति डरा डरा हुआ है।  यह एक ऐसा सन्नाटा है जो कि हर व्यक्ति को ति से  कर देता है। अमरिका में कोई अनजान को अगर समय पूछता है तो भी सामनेवाला घबरा जाता है ! गुजरात में आज ऐसा ही वातावरण हो गया है।  कोई  अपने आप को सलामत नहीं समजता है। और सब से बड़ी बात ये है कि इस सन्नाटे के पीछे दुःख के साये मंडराए हुए हैं। हालांकि, इंटरनेट पे आज-कल बहुत ही ब्लॉग छपते हैं, जिनमे कुछ मनोरंजन के लिए  होते हैं, कुछ किसी व्यावसायिक हेतु के लिए होते हैं, कुछ इश्तेहार के लिए तो कुछ दूसरे हेतुओं के लिए होते हैं।  परन्तु मैंने आज से यहाँ इस ब्लॉग के जरिये सत्य को आवाज देने का बीड़ा उठाया है।  'जूठ बोले कौआ काटे' शीर्षक से मैं सभी जूठ से पर्दा उठाने का काम करना चाहती हूँ । 
    
           उदहारण के तौर पे गुजरात की वर्त्तमान सरकार को ले लो।  आज 2014 का यह फरवरी माह चल रहा है, लेकिन गुजरात सरकार 2001 से पूरे गप्पे हांकती चली आ रही है कि गुजरात का विकास हो गया, यहाँ कोई गरीब नहीं, यहाँ सब सुखी हैं ! ऐसे गुब्बारों से हवा निकाल देने का कार्य मैं करना चाहती हूँ।  मैं चाहती हूँ कि हर इक व्यक्ति  सोचे, समजे और गुजरात को सही मायने में देखे, न कि उस चित्र को देख गुजरात की कल्पना कर ले जो यहाँ-वहाँ सब जगह दिखाया जा रहा है। सत्य यह है कि देश के किसी भी राज्य की तुलना में गुजरात  सरकार पेट्रोल, डीजल पर ज्यादा वेट लगाती है और यही वजह है कि कीमतें बढ़ती जाती हैं। गोवा में भाजपा सरकार ने वहाँ पेट्रोल सस्ता मिल सके उसके लिए अनावश्यक और अधिक टेक्स हटा दिए हैं।लेकिन गुजरात की भाजपा सरकार के पास समय नहीं है।  
    
         गुजरात को एक  विकास मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है, परन्तु सभी मापदंडों से गुजरात अभी भी पिछड़ा हुआ है। शैक्षिक विकास इंडेक्स में गुजरात बहुत पीछे चला गया है।  गुजरात के मुख्यमंत्री को अपनी प्रशंसा करवाना बहुत अच्छा लगता है, भले वे उसके लिए पात्र हों या न हों। राज्य में शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए बिलकुल नीचे से प्रयास करना चाहिए होता है, शिक्षकों को अच्छी तनख्वाह देनी होती है, स्कूलों के मकान और उनमे सब सुविधाएं देनी पड़तीं हैं, लेकिन यह सब कौन करेगा ! इनको तो अवार्ड ही चाहिए, जो कहीं से भी 'मैनेज' किया जा सकता है।  देश के 662 जिलों में स्थित प्राइमरी स्कूलों का निरीक्षण कर यह कहा गया था। प्राइमरी शिक्षा की दिशा में गुजरात का स्थान 12 था, वो अब 28  हो गया है। 
   
          पूरी दुनिया में गुजरात को नंबर वन कहने वाले मुख्यमंत्री  ने 14 वे वित्तआयोग के समक्ष ऐसा कहकर बहुत बड़ी राशि मांगी कि गुजरात तो बिलकुल गरीब राज्य है। वित्तआयोग के सामने अपने राज्य को पिछड़ा कहकर पैसे मांगने में उनको शर्म नहीं आती, न ही संकोच होता है, और ना ही उनका स्वाभिमान दुखता है ! केरल में जाकर पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को लुभाने के लिए खुद को दलित बताने वाले मोदी को गुजरात में पिछड़ी जाती की कोई समस्या में दिलचस्पी नहीं, खुद के राज्य में पिछड़े लोगों पर अत्याचार हो तो भले हो !
    
           गुजरात में बहुत विकास हो गया होता तो क्यों गुजरात का साधारण आदमी दुखी है ? विकास हो ही गया है तो फिर जनता को इतनी महंगाई क्यों झेलनी पड़ती है ? गुजरात की राज्य परिवहन सेवा में बस भाड़े बढ़ गए हैं, जनता जो की पहले बस में बैठ अपने रिश्तेदारों से मिनले जाती थी वह अब घर से बाहर निकलने से भी डर रही हैं। गुजरात के स्वाभिमान की बात करनेवाले मुख्यमंत्री ने मानो दबा दिया है गुजरात कि जनता के गुस्से को, जो एक शोला है, एक ज्वालामुखी है।
   
             केंद्र सरकार के खिलाफ पूरे देश में निंदा और तिरस्कार पैदा करने का काम करनेवाले लोग अपने राज्य में किसी को अपने खिलाफ जबान खोलने नहीं देते।  जिसने भी जबान खोली वह सदा के लिए शांत हो जाता है ! गुजरात सरकार के गलत क़दमों का विरोध अगर किसी ने किया तो उसको गुजरात विरोधी कहा जाता है ! नतीजा यह आता है कि कोई विरोध ही नहीं होता, और दुनिया को लगता है कि गुजरात में स्वर्ग उतर आया है !

                  तो, इस तरह कि बातें मैं आपके सामने हररोज लाती रहूंगी और आपको सत्य से वाक़िफ़ कराती रहूंगी।   पढ़ते रहिये, पढ़ाते रहिये।  
अस्तु।