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आडवाणी और मोदी |
भाजपा के पीएम प्रत्याशी
नरेंद्र मोदी के राजनीति में एकदम से उबाल आ गया है। वास्तव में भाजपा इसके सहारे दो सौ पार जा
पाएगी यह कहना अभी बहुत मुश्किल है। आडवाणी नाराज हो जाते हैं। इस्तीफा देते हैं। कड़ा
पत्र लिख कर भाजपा की दशा-दिशा पर गंभीर सवाल उठाते हैं। कुछ गुमनाम शर्तों के साथ
इस्तीफा वापस लेते हैं। नीतीश आंखें दिखाते हैं। सत्रह साल का गठबंधन टूट जाता है ।
आडवाणी से मिलते हैं लेकिन गिले-शिकवे दूर नहीं हो पाते हैं। आडवाणी चुनावी सभाओं
से खुद को अलग करने का आग्रह करते हैं। यह सब हुआ है मोदी की वजह
से। न मोदी गोवा में घोषणा की जिद करते,
न आडवाणी रूठते, न इस्तीफा होता,
न नीतीश अलग होते तो जिस
मोदी के कारण इतना सब हुआ वही मोदी अब आगे क्या करेंगे! आडवाणी जहां राजग का
विस्तार करने पर जोर देते रहे हैं वहीं मोदी अपने दम पर किला फतह करने पर आमादा
हैं। भारतीय
जनता पार्टी ने राजस्थान की बाडमेर संसदीय सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में
पर्चा भरने वाले अपने वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को शनिवार को पार्टी से छह वर्षों के
लिए निष्कासित कर दिया। क्योकी
भाजपा को सिर्फ एक ही नाम दिखाई देता हे मोदी लेकिन भाजपा वाले भूल गए हे की जो आज
आडवाणी हाल
हे वाही कल उनका ही होंगा ! क्या मोदी इतने लोकप्रिय हैं, क्या उनका गुजरात मॉडल इतना शानदार है,
क्या 2002 के दंगों के दाग धुल चुके हैं, क्या मोदी इस कदर ध्रुवीकरण कर सकेंगे कि भाजपा के पक्ष में
निर्णायक वोट गिरें। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर
भाजपा के आला नेता भी मंथन कर रहे हैं!
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नाराज आडवाणी का इस्तीफा
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मोदी जी कह रहे हैं कि
गुजरात में स्वराज आ गया है, लेकिन जूठ। गुजरात में आज भी स्थिति बरकरार है। सार्वजनिक
प्रशासन में भ्रष्टाचार है और हररोज नए घोटाले खुल रहे हैं। गांधीनगर में मोदी जी
के ही शहर में कोई चम्पावट नाम का आदमी,
जो कि भाजपा का कार्यकर था, वह डेढ़ करोड़ की नकद राशि के साथ पकड़ा गया और जोर से पुलिस
को बता रहा था कि वह सब पैसे भाजपा को चुनाव जितने के लिए देने वाला था! गुजरात
में रेवेन्यू तलाटी की नौकरियों के लिए इस चम्पावट ने रिश्वत लेने में पीछे मुड़ के
नहीं देखा। और पुलिस का छापा पड़ा उसकी संस्था पर। कुछ दिनों पहले मोदी साहेब ने
केराल में पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए अपने आप को दलित बता दिया था। उन्होंने कहा था,
“मैं आपके
परिवार का ही हूँ। आप मेरे परिजन हैं।” ! सवाल यह है की अपने आप को बिना-परिवार का बताकर जनता के पास
जानेवाले मोदी के शब्दों में कितना विश्वास किया जाना चाहिए ? उदहारण के तौर पे गुजरात की वर्त्तमान सरकार को ले लो। आज 2014 का यह अप्रैल माह चल रहा है, लेकिन गुजरात सरकार 2001
से पूरे गप्पे हांकती चली आ
रही है कि गुजरात का विकास हो गया,
यहाँ कोई गरीब नहीं, यहाँ सब सुखी हैं ! ऐसे गुब्बारों से हवा निकाल देने का
कार्य मैं करना चाहती हूँ। क्या मोदी गुजरात मॉडल की दुहाई देकर (यहां भी कमजोरियां
लगातार सामने आ रही हैं)
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हवा का गुब्बारा
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मोदी ने जब से गुजरात के
बाहर घूमना और भाषण देना शुरू किया है तब से उनके दावों पर भी सवाल उठने लगे हैं।
गुजरात मॉडल की कमजोरियां भी सामने आ रही हैं। कुछ अहेवालोमे सामने आयाहे की मोदी उद्योगपतियों की ही मदद करते हैं, उन्हें इतनी सारी रियायतें देते हैं कि कोई भी उद्योग
गुजरात में लगाने को तैयार हो जाए। यही उद्योगपति मोदी का गुणगान करते हैं और बाकी
का काम मोदी की प्रचार-प्रसार टीम संभाल लेती है। सामाजिक क्षेत्र में मोदी का
विकास मॉडल थमा हुआ है। कैग भी साफ कर चुका है कि मोदी किस तरह नियमों को ताक पर
रखउद्योगपतियों की मदद करते हैं और इससे सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचता है। क्या भारत को ऐसे मॉडल की जरुरत हे ! क्या
हमारा आनेवाला कल एक ऐसा नेता के हाथ में देंगे जो अपनी ही मनमानी चलता हें !
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