Tuesday, April 29, 2014

एक ढोंगी दलित



भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी चुनावी समर में वैसे तो दलितोँ के विकस कि बात कर रहे हैं लेकिन ह़की़कत कुछ और ही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का दलितों के प्रति झूठा प्रेम समूह नवसृजन ने आरटीआई के जरिए सामने लाया है। नरेंद्र मोदी एसटी और पिछडे समुदाय के विकास के लिए गठित समिति के अध्यक्ष हैं और उन्होंने पिछले 10 सालों में सिर्फ दो बार ही इसकी अध्यक्षता की है। आरटीआई से पता चला है कि मोदी सरकार ने पिछले एक दशक में दलितों और समाज में आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछडे वर्गो के विकास के लिए मिले लगभग 3,689 करोड़ के फंड का इस्तेमाल ही नहीं किया है।

दलित समूह नवसृजन के मुताबिक मोदी जिस समिति के अध्यक्ष हैं वह समिति पिछडे वर्गो के विकास के लिए आवंटित होने वाले फंड पर नजर रखती है। उन्होंने समीक्षा बैठक अगस्त 2003 और जून 2004 में की थी। आरटीआई में बताया गया है कि गुजरात सरकार को फंड जारी करने में देरी करने से 2007 से 2014 के बीच निर्घारित फंड से कम राशि खर्च हुई। 2007 में 1097 करोड़ रूपए खर्च किए जाने थे लेकिन 554.16 करोड़ ही खर्च हुए। 2013 में 4095 करोड़ राशि खर्च की जानी थी जिसमें से केवल 2850 करोड़ ही खर्च हुए।

ह्यूमनराईट्स द्वारा तैयार की रपट अन्डरस्टेडिंग अनटचेबिलिटी कहती है कि गुजरात में ९० प्रकार की अस्पृश्यताएं व्यवहार में हैं। दलितों को सार्वजनिक स्त्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता, वे मंदिरों में प्रवेश नहीं कर सकते और आज भी गुजरात में १२ हजार से अधिक लोग सिर पर मैला ढोने के काम में लगे हुये हैं। वे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ भी नहीं सकते क्योंकि पुलिस और प्रशासन उनकी मदद नहीं करता। विरोध करने पर उनका सामाजिक बहिष्कार भी किया जाता है। राजनैतिक-सामाजिक स्तर पर तो दलित भेदभाव के शिकार हैं ही, पुलिस भी उन पर अत्याचार करने में पीछे नहीं है। गुजरात में ऐसी कई घटनाएं हुईं है जिनसे ऐसे लगता है कि पुलिस जानबूझकर अन्याय के खिलाफ दलितों के संघर्ष को कुचलना चाहती है।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के एक रपट, गुजरात सरकार के इस दावे की पोल खोलती है कि राज्य में सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा समाप्त हो गयी है। रपट कहती है, “वाईब्रेंट गुजरात में 12,000 से अधिक लोग सिर पर मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं। इनमें से 10 प्रतिशत को कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराये जाते हैं और वे अपने हाथों से मैला साफ़ करने पर मजबूर हैं। रपट के अनुसार, 2456 परिवारों के 12,506 व्यक्ति इस घिनौने काम को कर रहे हैं उनमें से ५० प्रतिशत, खुले में पड़ा मैला उठाते हैं। तथ्य यह है कि यह अध्ययन केवल 10,000 से अधिक आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में किया गया था जाहिर है कि रपट में उन हजारों छोटे-बड़े गाँवों और कस्बों के हालात का जिक्र नहीं है जहाँ जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता और सिर पर मैला ढोने की प्रथा प्रचलित हैं। 
दलित नेता के साथ खड़े रहकर आने वाले दशक को दलितों का दशक कहकर पब्लिसिटी लेनेवाले मोदी के राज्य में ही दलितों को करोडो के फंड के बावजूद पूरी सहाय नहीं मिल रही है। मोदी हर जगह सबके विकास की बाते करते है तो फिर इन्ही के राज्य में दलितों के साथ अन्याय क्यों हो रहा है मोदी जी अपने आप को दलित बोलते है और ख़ुद ही दलितों से दुर क्यों रहते है?

Thursday, April 24, 2014

7 'महा' झूठ...


फेंकू के 7 'महा' झूठ...
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी इन दिनों मीडिया का 'प्रमुख चेहरा' हैं। देश के प्रधानमंत्री से ज्यादा मोदी के भाषणों के चर्चा होती है, वे जो बोलते हैं उसकी चीर-फाड़ भी काफी होती है। पिछले कुछ दिनों से यह बहुत ज्यादा हो रहा है। मोदी के हाल के भाषणों की कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें उनके झूठ के रूप में बताया जा रहा है। अब यह उनके झूठ हैं या फिर जानकारी का अभाव यह फैसला तो जनता ही कर सकती हैं।

पहला झूठ - 
नरेन्द्र मोदी का कहना है कि चीन अपनी जीडीपी का 20 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है, लेकिन भारत सरकार नहीं। 

हकीकत यह है कि चीन अपनी जीडीपी का महज 3.93 प्रतिशत ही शिक्षा पर खर्च करता है। वहीं भारत में एनडीए सरकार के कार्यकाल में शिक्षा पर1.6 प्रतिशत खर्च हुआ और यूपीए के कार्यकाल में सालाना जीडीपी का 4.04 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च हुआ है।

दूसरा झूठ : मोदी ने सभा भारतीय इतिहास से बिहार के गौरव का उदाहरण बखान करते हुए बताया कि सिकंदर महान को गंगा नदी के तट पर बिहारियों ने हराया था। 

हकीकत यह है कि सिकंदर महान तक्षशिला से होते हुए से पुरु के राज्य की तरफ बढ़ा जो झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था। राजा पुरु से हुए घोर युद्ध के बाद वह व्यास नदी तक पहुंचा, परन्तु वहां से उसे वापस लौटना पड़ा। उसके सैनिक बिहार के नन्द शासक की विशाल सेना का सामना करने को तैयार न थे। इस तरह से सिकंदर पंजाब से ही वापस लौट गया था।



तीसरा झूठ : मोदी ने बिहार के गौरवशाली इतिहास का बखान करते हुए कहा कि विश्व प्रसिद्ध तक्षशिला या टेक्सिला विश्वविद्यालय बिहार में था। 

हकीकत यह है कि तक्षशिला प्राचीन भारत में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। तक्षशिला वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले की एक तहसील है।


चौथा झूठ : एनडीए की कार्यकाल में भारत की विकास दर 8.4 प्रतिशत थी। 

हकीकत यह है कि एनडीए के कार्यकाल में भारत की विकास दर मात्र 6 प्रतिशत थी।


पांचवा झूठ : गुजरात में देश में सबसे अधिक विदेशी पूंजी निवेश होता है। 

हकीकत यह है कि आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 से 2011 तक गुजरात में 7.2 बिलियन डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ है, जबकि इसी अवधि में महाराष्ट्र में 45.8 बिलियन डॉलर और दिल्ली में 26 बिलियन डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ है।


छठा झूठ : नर्मदा पर बांध बनने पर लोगों को मुफ्त बिजली मिलेगी। 

हकीकत यह है कि अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि किसी प्रदेश में नदियों पर बांध बनने से मुफ्त में लोगों को बिजली मिली हो। राष्ट्रीय बिजली नियामक आयोग के अनुसार बिजली के लिए पैसा देना ही होगा।



सातवां झूठ : मोदी ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उनके पटना भाषण के बाद सरकार ने टीवी मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की नीयत से मीडिया एडवाइजरी जारी की है।

हकीकत यह है कि इस मामले हकीकत इससे उलट है। दरअसल, नरेन्द्र मोदी ने पटना में भाषण दिया था, जबकि सूचना प्रसारण मंत्रालय की एडवाइजरी इससे एक सप्ताह पहले जारी कर दी गई थी। यह एडवाइजरी सूचना प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर भी मौजूद है।

यह है फेंकू के 7 महा झूठ। वोट बटोरने में लगे मोदी भूल जाते है की सच क्या है और झूठ क्या है। मोदी को इतिहास की ज़रा सी भी जानकारी नहीं है। क्या आप इसे व्यक्ति को वोट देंगे ?

Thursday, April 17, 2014

कितना सही, कितना गलत


क्या यही है महिला की सुरक्षा ?


नरेंद्र मोदी और विवाद हमेशा साथ-साथ चलते हैं। कभी गुजरात दंगे, तो कभी उनके राजनीतिक बयान, तो कभी कुछ और। बीजेपी अपने चुनावी अभियान में गुजरात मॉडल को खूब उछाल रही है और साबित करने में जुटी है कि वहां खुशहाली बरस रही है। पर सचाई यह है कि राज्य में महिलाओं की हालत शोचनीय है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में प्रति 1000 पुरुषों पर 919 महिलाएं हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा औसतन 940 का है। लगता है, गुजरात में कन्या भ्रूण हत्या का चलन जोरों पर है। वहां दस सालों तक राज करके जब मोदी बेटियों को नहीं बचा पाए, तब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने का उनका दावा खोखला ही नजर आता है।

यह चुनाव कांग्रेस और बीजेपी का राजनीतिक टकराव भर नहीं है। इसमें कई मूल्य और विचार भी दांव पर लगे हुए हैं। बीजेपी समर्थकों का एक तबका पार्टी के सत्ता में आने को पुरातन मूल्यों और परंपराओं की स्थापना की तरह ले रहा है। इस वर्ग को लग रहा है कि 'जय श्रीराम' के नारे के साथ ही हिंदूवाद का परचम लहराने लगेगा और 'बिगड़ती' या 'उच्छृखंल' होती स्त्री को काबू में लाया जा सकेगा। इस तरह की बातें सार्वजनिक स्तर पर सुनी जा सकती हैं।

पुरे देश में बीजेपी महिला अधिकारों और सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता का दावा करती है और इसके लिए भी गुजरात का हवाला देती है। उसने अपने मैनिफेस्टो में भले ही औरतों से संबंधित खासतौर से रेप से जुड़े कानूनो के कड़े इंप्लिमेंटेशन की बात कही है, लेकिन इस स्तर पर भी गुजरात में हालात काफी बुरे हैं। देश में रेप और अपहरण से जुड़े मामलों में सजा दिए जाने का प्रतिशत गुजरात में सबसे कम है। इन दिनों पर महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में मानो उफान सा आ गया है। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब देश के कई कोनों से महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं की खबर न आती हों। और अत्याचार भी एक से बढ़कर एक  दरिंदगी और हैवानियत की हद पार करती हुई। गुजरात के पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 1990-2000 के दशक के दौरान 192 दलित महिलाओं के बलात्कार के किस्से, जबकि 2000-10 के दशक के दौरान 313बलात्कार के किस्से दर्ज किया गया है। इसी प्रकार 2000 और 2010 के दौरान बलात्कार के किस्से में 63 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। क्या आपको लगता है की फेंकुजी महिलाओं की रक्षा करेंगे??

'अब नहीं होगा नारी पर वार, अब की बार मोदी सरकार'- का नारा बुलंद करने वाली बीजेपी गुजरात में एक दशक में हालत बेहतर कैसे नहीं कर पाई?सवाल है कि अगर स्त्री को लेकर पुरातनपंथी सोच रखने वाले जनप्रतिनिधि इस बार चुनकर आ गए तो क्या होगा? क्या जो लड़कियां अभी कल्पना चावला से लेकर करीना कपूर बनने तक का ख्वाब सजाए रखती हैं और उसे पूरा करने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयासरत रहती हैं, वे भारी नुकसान में रहेंगी? क्या उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध टीचर बनना होगा या वे ही प्रफेशंस अपनाने होंगे जो 'देवियों' को शोभा देते हैं? क्या उन्हें किसी ड्रेस कोड का पालन करना होगा? बीजेपी नेतृत्व भले ही अपने को आधुनिक और विकास का पक्षधर बता रहा हो, पर उसके पीछे वह जमात खड़ी है,जो स्त्री को लेकर पोंगपंथी सोच रखती है। यह वर्ग पार्टी की एक बड़ी ताकत है। पार्टी इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती। आश्चर्य तो यह है कि बीजेपी में शामिल होने वाली महिला नेताओं और सेलिब्रिटीज को इसका अहसास क्यों नहीं है?


Saturday, April 12, 2014

आधी हकीकत, आधा फ़साना

आधी हकीकत, आधा फ़साना
अगले आम चुनावों के मद्देनजर इन दिनों देश भर में भाजपा नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के अश्वमेध का घोड़ा निकल पड़ा है। पहले दौर में मोदी के प्रचार की मुख्य थीम विकास’ है जिसमें वे हर दूसरे मिनट वे गुजरात में अपने नेतृत्व में हुए कथित विकास’ की आधी सच्ची-आधी झूठी कहानियां सुनाते हैं। अपने भाषणों में वे बड़े-बड़े दावे करते हैं और उन दावों-कहानियों के जरिये वे शाइनिंग इंडिया’ की तर्ज पर वाईब्रेंट यानी चमकीले गुजरात माडल’ का मिथ रचते हैं। मुश्किल यह है कि इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर न्यूज मीडिया कभी मोदी के श्री-मुख से निकले दावों की पड़ताल और छानबीन की कोशिश नहीं करता है। वह एक पोस्ट-आफिस की तरह मोदी के दावों और कहानियों को जस का तस लोगों तक पहुंचाने का माध्यम भर बनकर रह गया है।

मेरे पास उतने साधन नहीं हैं कि मोदी के दावों की जमीन पर जाकर पड़ताल कर सकूँ। लेकिन गूगल बाबा की कृपा से जो जानकारियां मिलती हैंवह भी मोदी के फसानों की हकीकत बयान करने के लिए काफी हैं। ऐसे ही कुछ दावों की पड़ताल और पूरे तथ्य आपके सामने पेश हैं। उम्मीद है कि इससे नेताओं खासकर प्रधानमंत्री के दावेदारों के दावों की बारीकी से पड़ताल की कोशिश कुछ आगे बढ़ेगी।    
        
फेंकूजी का सच’-1
 
फेंकूजी ने दिल्ली में फिक्की की महिला सभा में दावा किया कि उन्होंने गुजरात में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए ५० फीसदी स्थान आरक्षित करनेवाले विधेयक को पारित किया है लेकिन गवर्नर उसे मंजूरी नहीं दे रही हैं।

तथ्य क्या हैंयह आधा और तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया सच’ है। पूरा सच यह है कि फेंकू सरकार ने गुजरात में स्थानीय प्राधिकरण कानून (संशोधन) विधेयक२००९ को पारित किया है जिसमें महिलाओं को ५० फीसदी आरक्षण देने के साथ-साथ उतनी ही प्रमुखता से अनिवार्य वोटिंग का प्रावधान भी शामिल किया गया है।

यह है मोदी का सच’ ! लेकिन मोदी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे बड़े आत्मविश्वास से दावे करते या आरोप लगाते हैं। इसके लिए वे बड़ी चतुराई से तथ्यों को आधा-अधूरा पेश करने से लेकर उसे तोड़ने-मरोड़ने से भी परहेज नहीं करते हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि मीडिया भी उनके दावों को बिना जांच-पड़ताल के सच’ की तरह पेश करने में लगा हुआ है।
               
फेंकूजी का सच’-2
इससे पहले दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में नरेन्द्र मोदी ने दावा किया था कि गुजरात के बजट में कोई घाटा नहीं है...

 सच यह है कि गुजरात के इस साल के बजट में राजस्व घाटा नहीं है लेकिन उसमें राजकोषीय घाटा २०४९६ करोड़ रूपये का है जो राज्य जी.डी.पी का २.५७ फीसदी है। यही नहींराज्य का कुल कर्ज भी पिछले साल के १.३३ लाख करोड़ रूपये से बढ़कर १.५८ लाख करोड़ रूपये हो गया है।

फेंकूजी का सच’-3

इसी सभा में नरेन्द्र मोदी ने यह भी दावा किया कि गुजरात में पिछले दस साल में बिजली की दरों में कोई वृद्धि नहीं की गई है..

लेकिन सच यह है कि वहां हर तिमाही में बिजली की दरों में वृद्धि होती है.. पिछले साल भी वृद्धि की गई थी...



फेंकूजी का सच’-4
आपको पोरबंदर के विट्ठल रादडिया की शायद याद होगी। उन्हें पिछले साल अक्टूबर में एक टाल गेट पर राइफल लेकर वहां के कर्मचारियों को धमकाते हुए देखा गया था। उस समय संसद और उससे बाहर भाजपा ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर खूब हंगामा किया था। एफ.आई.आर भी हुई थी। बाद में हाई कोर्ट ने भी रादडिया की आलोचना की थी।

लेकिन पार्टी विथ डिफ़रेंस’ भाजपा और सुशासन के नए मसीहा बनकर उभर रहे मोदी ने रादडिया को पुत्र सहित भाजपा में शामिल करा लिया है। आज मोदी खुद रादडिया के स्वागत के लिए इस मौके पर मौजूद थे। लेकिन इसमें क्या आश्चर्यअलग चालचरित्र और चेहरे’ वाली पार्टी के लिए यह कोई नई बात नहीं है।

फेंकूजी का सच’-5
नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में एक बार भी कारपोरेट लूट के बारे में नहीं बोला है। २ जी से लेकर कोयला आवंटन तक में सत्ता और राजनेताओं की मदद से धड़ल्ले से हो रही सार्वजनिक संपत्ति की कारपोरेट लूट किसी से छुपी नहीं है।

लेकिन भ्रष्टाचार और लूट के आपूर्ति पक्ष के बारे में बात करते हुए लौहपुरुष’ के पुरुषार्थ’ की घिग्घी क्यों बंद जाती हैक्या इसलिए कि गुजरात में भी यही हो रहा है? यह है मोदी के दावों और कामों की असलियत। लेकिन क्या कोई चैनल/अखबार इस सच्चाई को सामने लाएगा?

Friday, April 11, 2014

मेरी बीवी हुई है!



मेरी बीवी हुई है!

आखिर फेकुजी ने सच स्वीकार कर लिया है कि वे शादीशुदा हैं और जसोदाबेन उनकी पत्नी का नाम है। अब तक जसोदाबेन ही मोदी को पति मान रही थीं पर अब और कितना झूठ पेस करेंगे फेकुजी इस रिश्ते की सच्चाई से कितने भागते रहे हें! इससे पहले फेकुजी ने तीन विधानसभा चुनाव लड़े और तीनों के ही नामांकन में उन्होंने वैवाहिक स्थिति दर्शाने वाले कॉलम को खाली छोड़ दिया था। उनकी यह स्वीकारोक्ति  अंतरआत्मा की आवाज नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बाद चुनाव आयोग ने 201२ में साफ कर दिया था कि अब कोई कॉलम खाली छोड़ा तो नामांकन-पत्र रद्द हो सकता है। इसी बातको नजर रखते हुए फेकुजी ने अपने नामांकन में उन्होंने वैवाहिक स्थिति दर्शाने वाले कॉलम में जसोदाबेन का नाम लिखा हें चुनाव आयोग की कड़ाई से ही जसोदाबेन को असली पहचान मिली है। सामाजिक दृष्टि से यह उस महिला की जीत है, जिसने केवल सात फेरों के सहारे पति के बिना जीवन के 45 साल काट लिए। फेहू ने शादी के इस सच को कभी सामने आने ही नहीं दिया। बीस दिन पहले हिमाचल की एक रैली में फेकुजी ने साफ तौर पर एलान किया था कि उनके आगे-पीछे कोई नहीं है।

अपनी ही जनता को धोखे में रखा
इस शादी को छुपाने की कोई जरूरत नहीं थी। जब पत्नी थी तो छुपाई क्यों? इसके पीछे एक राज हें और वोराज हे आरएसएस में प्रचारक रहते जाहिरतौर पर वे शादीशुदा होने की बात स्वीकार करते तो शायद उन्हें संघ में वह हैसियत नहीं मिलती, जिसके सहारे वे राजनीति की सीढिय़ां तेजी से चढ़ते हुए अब प्रधानमंत्री पद के दावेदार बने हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में मोदी ने नामांकन पत्र में शादीशुदा कॉलम को खाली छोड़ दिया। अगर वे उसमें अविवाहित होने का जिक्र कर देते तो आज  शायद उन पर कानून की तलवार लटक जाती। क्योकि फेकू का सच तो सामने आने वाला ही था !

वह अपनी पत्नी को सच नहीं हो सकता है जो अपने देश के लिए सच नहीं हो सकता! अब अपनी पसंद करें इनके प्रधानमंत्री पद के उम्मेदवार ने अपनी ही जनता को धोखे में रखा ऐसी पार्टी को सात्ता देना देश से झूठ बोलने जैसा होगा!