Thursday, April 17, 2014

कितना सही, कितना गलत


क्या यही है महिला की सुरक्षा ?


नरेंद्र मोदी और विवाद हमेशा साथ-साथ चलते हैं। कभी गुजरात दंगे, तो कभी उनके राजनीतिक बयान, तो कभी कुछ और। बीजेपी अपने चुनावी अभियान में गुजरात मॉडल को खूब उछाल रही है और साबित करने में जुटी है कि वहां खुशहाली बरस रही है। पर सचाई यह है कि राज्य में महिलाओं की हालत शोचनीय है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में प्रति 1000 पुरुषों पर 919 महिलाएं हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा औसतन 940 का है। लगता है, गुजरात में कन्या भ्रूण हत्या का चलन जोरों पर है। वहां दस सालों तक राज करके जब मोदी बेटियों को नहीं बचा पाए, तब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने का उनका दावा खोखला ही नजर आता है।

यह चुनाव कांग्रेस और बीजेपी का राजनीतिक टकराव भर नहीं है। इसमें कई मूल्य और विचार भी दांव पर लगे हुए हैं। बीजेपी समर्थकों का एक तबका पार्टी के सत्ता में आने को पुरातन मूल्यों और परंपराओं की स्थापना की तरह ले रहा है। इस वर्ग को लग रहा है कि 'जय श्रीराम' के नारे के साथ ही हिंदूवाद का परचम लहराने लगेगा और 'बिगड़ती' या 'उच्छृखंल' होती स्त्री को काबू में लाया जा सकेगा। इस तरह की बातें सार्वजनिक स्तर पर सुनी जा सकती हैं।

पुरे देश में बीजेपी महिला अधिकारों और सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता का दावा करती है और इसके लिए भी गुजरात का हवाला देती है। उसने अपने मैनिफेस्टो में भले ही औरतों से संबंधित खासतौर से रेप से जुड़े कानूनो के कड़े इंप्लिमेंटेशन की बात कही है, लेकिन इस स्तर पर भी गुजरात में हालात काफी बुरे हैं। देश में रेप और अपहरण से जुड़े मामलों में सजा दिए जाने का प्रतिशत गुजरात में सबसे कम है। इन दिनों पर महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में मानो उफान सा आ गया है। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब देश के कई कोनों से महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं की खबर न आती हों। और अत्याचार भी एक से बढ़कर एक  दरिंदगी और हैवानियत की हद पार करती हुई। गुजरात के पुलिस महानिदेशक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 1990-2000 के दशक के दौरान 192 दलित महिलाओं के बलात्कार के किस्से, जबकि 2000-10 के दशक के दौरान 313बलात्कार के किस्से दर्ज किया गया है। इसी प्रकार 2000 और 2010 के दौरान बलात्कार के किस्से में 63 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। क्या आपको लगता है की फेंकुजी महिलाओं की रक्षा करेंगे??

'अब नहीं होगा नारी पर वार, अब की बार मोदी सरकार'- का नारा बुलंद करने वाली बीजेपी गुजरात में एक दशक में हालत बेहतर कैसे नहीं कर पाई?सवाल है कि अगर स्त्री को लेकर पुरातनपंथी सोच रखने वाले जनप्रतिनिधि इस बार चुनकर आ गए तो क्या होगा? क्या जो लड़कियां अभी कल्पना चावला से लेकर करीना कपूर बनने तक का ख्वाब सजाए रखती हैं और उसे पूरा करने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयासरत रहती हैं, वे भारी नुकसान में रहेंगी? क्या उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध टीचर बनना होगा या वे ही प्रफेशंस अपनाने होंगे जो 'देवियों' को शोभा देते हैं? क्या उन्हें किसी ड्रेस कोड का पालन करना होगा? बीजेपी नेतृत्व भले ही अपने को आधुनिक और विकास का पक्षधर बता रहा हो, पर उसके पीछे वह जमात खड़ी है,जो स्त्री को लेकर पोंगपंथी सोच रखती है। यह वर्ग पार्टी की एक बड़ी ताकत है। पार्टी इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती। आश्चर्य तो यह है कि बीजेपी में शामिल होने वाली महिला नेताओं और सेलिब्रिटीज को इसका अहसास क्यों नहीं है?


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